
ग्वालियर। यदि जीवन में प्रभु को पाना चाहते हो तो संतों की सेवा और सम्मान करना सीख लें, संत चरण जिस घर में पड़ते हैं वहां ईश्वरीय शक्तियां स्वत ही आ जाती हैं। यह सारगर्भित व्याख्या जगतगुरु डॉ रामकमल दास वेदांती महाराज ने कछीआ गांव में श्री कुंअर महाराज मंदिर पर चल रही श्रीराम कथा में व्यक्त किए।
वेदांती महाराज ने संतों की महिमा का व्याख्यान करते हुए कहा कि राजा जनक के घर जब सीता जी का जन्म हुआ और जैसे जैसे वह बड़ी हुई उनके विवाह के लिए राजा जनक ने दशरथ को निमंत्रण नहीं दिया बल्कि गुरु विश्वामित्र को विवाह में आने का आग्रह किया था, उनके साथ प्रभु राम और लक्ष्मण भी विवाह समारोह में शामिल हुए।
वेदांती महाराज ने माता सीता के विषय में बताते हुए कहा कि एक बार जनक जी ने माता सीता की सफाई के लिए कहा तो उन्होंने 5 वर्ष की आयु में ही शिव भगवान से प्राप्त धनुष को एक जगह से दूसरी जगह उठाकर रख दिया। यह देख जनक जी समझ गए की पुत्री सीता कोई आदिशति है, यदि धरती पर भगवती का जन्म हो चुका है तो भगवान भी आ चुके हैं। जगतगुरु ने कहा कि भगवान राम का जन्म महोत्सव एक माह तक चला था। तीनों लोक में देवी देवता और मनुष्य अत्यंत हर्षोल्लास में थे। भगवान आदित्य नारायण भी प्रभु के जन्म उत्सव में इतने प्रसन्न हुए के वह अस्त होना ही भूल गए। एक माह गुजर जाने के बाद देवताओं ने सूर्य भगवान से प्रार्थना की, कि आप अस्त ही जाइए तब जाकर उन्हें होश आया और वह अस्त हुए।
संतश्री वेदांती महाराज ने रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि विश्वामित्र जी ने भगवान राम को ताड़का का वध करने के लिए कहा तो भगवान ने एक ही वाण में ताड़का के प्राण हर लिए , इसी समय गुरु विश्वामित्र जी को विश्वास हो गया प्रभु श्रीराम ही वह आदिशक्ति हैं जो इस धरा से राक्षसों का अंत कर सकते हैं।
जगतगुरु श्री रामकमल दास वेदांती महाराज ने रामायण के दो महत्वपूर्ण पात्र दशरथ और दशानन के अर्थ को समझाते हुए बताया कि दोनों के ही नाम में दश आता है। महाराज दशरथ ने विषय वासना पर लगाम लगाकर दशो इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी तो वहीं दशानन ने सभी इंद्रियों को वासना में लगा दिया था, जिसके कारण वह राक्षस प्रवृत्ति का हो गया। उन्होंने कहा- भगवान सृष्टि में पैदा होने वाले प्रत्येक मनुष्य को 10 इंद्रियां प्रदान करता है, जिनमें पांच कर्मेंद्रियां और पांच ज्ञानेंद्रिय होती हैं। जो मनुष्य इन पर विजय प्राप्त कर लेता है वह ईश्वर तत्व को जान लेता है। उन्होंने बताया की हरि व्यापक सर्वत्र समाना अर्थात भगवान तो सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, जिस दिन आप राजा दशरथ बन जाओगे भगवान आपके हृदय में ही प्रगट हो जाएंगे।
जगतगुरु वेदांती महाराज ने रामायण में सीता हरण का वृतांत बताते हुए कहा कि जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था और उन्हें अशोक वाटिका में परेशान करता था तब माता सीता ने चरण की वोट लेकर रावण से कहा था कि मेरे प्रभु श्रीराम की यदि भृकुटी टेढ़ी होने पर पृथ्वी पर प्रलय आ जाएगी, विधाता ने तुम्हारे वध के लिए लीला को रचा है। मैं चाहूं तो तुझे अभी इसी वक्त अपने तेज से भस्म कर सकती हूं लेकिन ईश्वर ने तेरी गति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के हाथ से ही लिखी है।
माताएं बच्चियों को संस्कार देना ना भूले-
जगतगुरु वेदांती महाराज ने कहा के आज के दौर में सनातन संस्कृति और सनातन को मानने वाले धर्मालवियों के पीछे एक गहरी पश्चिमी साजिश काम कर रही है इसलिए घर को बेटियों को संरकार देना न भूले। बेटियों पर माता-पिता और ससुराल दो परिवारों की जिम्मेदारी होती है। इसलिए उनमें संस्कार होना चाहिए। ऐसे में वर्तमान दौर में माता-पिता को अत्यधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि बहन बेटियों को अपने पहनावे का विशेष ध्यान देना चाहिए नारी का श्रृंगार उसकी मर्यादा के अनुसार ही होना चाहिए। श्रीराम कथा में पटिया बाले करह धाम मंदिर के महंत व महामंडलेश्वर और धूमेश्वर धाम के महंत महामंडलेश्वर अनिरुद्ध वन महाराज भी पहुंचे। कथा के दौरान दोनों संतों से श्रद्धालु भक्तों ने कथा श्रवण करने के साथ ही आशीर्वाद लिया।लिया।