टॉप न्यूज़

प्रतिबंध के बावजूद नरवाई जलाना 60 किसानों को भारी पड़ा; डबरा एसडीएम ने लगाया ₹ 2.14 लाख का अर्थदण्ड, इस राशि को भू-राजस्व वसूली की तर्ज पर वसूल की जा रही है

नरवाई प्रबंधन पर कृषक जागरूकता सह-संगोष्ठी आयोजित, संगोष्ठी में आधा सैकड़ों कृषकों ने की भागीदारी, नरवाई जलाने से घटती है खेत की उर्वरा शक्ति

ग्वालियर। प्रतिबंध के बावजूद नरवाई (फसल अवशेष) जलाना जिले के 60 किसानों को भारी पड़ा है। इन किसानों पर लगभग 2 लाख 14 हजार रूपए का अर्थदण्ड लगाया गया है। जिले के डबरा राजस्व अनुविभाग में स्थित विभिन्न ग्रामों के किसानों के खिलाफ डबरा एसडीएम दिव्यांशु चौधरी द्वारा यह कार्रवाई की गई है। अर्थदण्ड अधिरोपित करने के साथ वसूली की कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। अर्थदण्ड की राशि भू-राजस्व वसूली की तर्ज पर वसूल की जा रही है। 

डबरा राजस्व अनुविभाग में गठित जाँच दलों द्वारा किए ग्रामीण क्षेत्र के भ्रमण के दौरान नरवाई जलाने की घटनाएँ सामने आईं थीं। जाँच के दौरान पाया गया कि ग्राम छपरा में 14 कृषकों द्वारा खेतों में फसल अवशेष जलाए गए हैं। इन किसानों पर 45 हजार रूपए का अर्थदण्ड अधिरोपित किया है। इसी तरह ग्राम बिर्राट में खेतों में नरवाई जलाने वाले 18 कृषकों पर एक लाख 5 हजार, ग्राम कल्याण में फसल अवशेष जलाने वाले 13 किसानों पर 41 हजार 500 रूपए एवं ग्राम समूदन में नरवाई जलाने वाले 15 कृषकों पर 22 हजार रूपए अर्थदण्ड लगाया गया है। 

मालूम हो कि फसल के अवशेष जलाने से फैलने वाले प्रदूषण पर अंकुश, अग्नि दुर्घटनाएँ रोकने एवं जानमाल की रक्षा के उद्देश्य से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी रुचिका चौहान द्वारा पूर्व में ही आदेश जारी कर जिले में गेहूँ की नरवाई इत्यादि जलाने पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जा चुका है। 

आदेश में स्पष्ट किया गया था कि खेतों में अवशेष जलाए तो संबंधित किसानों को पर्यावरण मुआवजा अदा करना होगा। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि दो एकड़ से कम भूमि धारक को 2500 रूपए प्रति घटना, दो एकड़ से अधिक व पाँच एकड़ से कम भूमि धारक को पाँच हजार रूपए प्रति घटना एवं पाँच एकड़ से अधिक भूमि धारक को 15 हजार रूपए प्रति घटना पर्यावरण मुआवजा देना होगा। 

नरवाई जलाने से घटती है खेत की उर्वरा शक्ति

नरवाई जलाने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचती है, साथ ही खेत की मिट्टी के लाभ दायक सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं। कहने का आशय है कि भूमि गर्म होने से उर्वरता घट जाती है। इसलिए किसान भाईयों से अपील की गई है कि गेंहूँ की कटाई के बाद नरवाई न जलाएँ। नरवाई जलाना दण्डनीय अपराध है। 

उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास आरएस शाक्यवार ने बताया कि नरवाई जलाने से भूमि में अम्लीयता बढती है, जिससे मृदा को अत्यधिक क्षति पहुँचती है । सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता घटने लगती है एवं भूमि की जलधारण क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पडता है । किसान भाई कम्बाईन हार्वेस्टर से कटाई के साथ ही भूसा बनाने की मशीन को प्रयुक्त कर यदि भूसा बनायेंगे तो पशुओं के लिए भूसा मिलेगा और फसल अवशेषों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित होगा। 

नरवाई प्रबंधन पर कृषक जागरूकता सह-संगोष्ठी आयोजित

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि से संबद्ध कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा शुक्रवार को ग्राम बडकी सराय में कृषक जागरूकता सह संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्देश्य किसानों को नरवाई प्रबंधन के बारे में जागरूक करना और उन्हें इसके महत्व के बारे में बताना था।

नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान

अक्सर देखा जाता है कि जिले के बहुत बड़े क्षेत्र में रबी फसल गेंहूं की कटाई के बाद किसानों द्वारा अपने खेतों की सफाई/नरवाई को नष्ट करने के लिए आग लगा दी जाती है। इससे भूमि में लाभदायक मित्रकीट और जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, साथ ही भूमि और वातावरण का तापमान भी बढ़ जाता है जो कि भूमि के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अत्यधिक हानिकारक होता है। नरवाई जलाने से मृदा में कार्बनिक पदार्थों की कमी हो जाती है, जिससे मृदा की जलधारण क्षमता कम होने के साथ भौतिक स्थिति और उर्वराशक्ति का ह्रास होता है।

वैकल्पिक तरीके: केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह चौहान ने फसल कटाई उपरांत नरवाई न जलाकर उसे स्ट्रॉरीपर से पशुओं के लिए भूसा बनवाने की सलाह दी। यदि भूसा नहीं बनवाया जाता है, तो विघटक (बायोडिकम्पोजर) का छिड़काव कर खेत की 10-12 दिन बाद जुताई कर सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे मृदा में कार्बनिक पदार्थ की वृद्धि होती है।

संगोष्ठी में दी गई जानकारी; केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपीएस तोमर ने नरवाई प्रबंधन पर किसानों को जागरूक करने के साथ जायद में खड़ी फसलों के कीट और रोग प्रबंधन पर विस्तृत जानकारी दी। इफको के क्षेत्रीय प्रबंधक  आरके. महोलिया ने बायोडिकम्पोजर का छिड़काव कर नरवाई को सड़ाने के लिए बायोडिकम्पोजर के उपयोग विधि पर प्रायोगिक जानकारी दी।

संगोष्ठी में कृषकों की भागीदारी; संगोष्ठी में बड़की सराय और आसपास के ग्रामों के 50 कृषकों ने भाग लिया। किसानों ने आगामी धान फसल की तैयारी के संबंध में आने वाली समस्याओं का समाधान वैज्ञानिकों से प्राप्त किया। संगोष्ठी में बलविंदर सिंह, सुखविंदर, बालकिशन कुशवाह, श्रीमती प्रीतम सिंह,  श्रीमती बलजीत कौर, श्रीमती हरपाल कौर आदि कृषकों ने भाग लिया।