
ग्वालियर। अभावों से उभरकर आत्मनिर्भर बनने तक का सफर बयां करते हुए रेखा कहती हैं कि सरकार द्वारा संचालित आजीविका मिशन ने मुझे एक बार नहीं बार-बार सहारा दिया है। मिशन की बदौलत ही हम आर्थिक कठिनाईयों से उबरने में सफल हुए हैं। अब हमें आमदनी का स्थायी जरिया मिल गया है और हमारा परिवार खुशहाली के साथ जिंदगी बसर कर रहा है।
ग्वालियर जिले की भितरवार तहसील के ग्राम गोहिंदा में रेखा सेन अपने परिवार के साथ रहती हैं। वे बताती हैं कि जब तक हम राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह से नहीं जुड़े थे। तब तक मेरा एवं मेरे परिवार का जीवन बड़ी कठिनाई में गुजरा। गाँव में गठित हुए भूमि आजीविका स्व- सहायता समूह से जुड़ने के बाद सबसे पहले मैंने सिलाई सेंटर के लिये 20 हजार रूपए समूह से लिए। सिलाई सेंटर से मुझे 4 हजार रूपए प्रतिमाह आमदनी मिलने लगी और धीरे-धीरे ब्याज सहित हमने ऋण की राशि चुकता कर दी।
स्व- सहायता समूह की रेखा बताती हैं कि इसके बाद भैंस पालन के लिये समूह से मुझे 60 हजार रूपए मिले। इससे मेरे बच्चों को दूध-घी तो मिला ही, साथ ही लगभग 700 रूपए प्रतिमाह आमदनी भी होने लगी। आमदनी बढ़ी तो हमने 60 हजार रूपए भी ब्याज समेत चुकता कर दिए। एक दिन मेरे पति ने इच्छा जताई कि कहीं से पैसों का इंतजाम हो जाए तो मैं सैलून की दुकान खोल लूँ। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि आप चिंता न करें, पैसे का इंतजाम हम करेंगे। आजीविका मिशन के समूह ने एक बार मुझे फिर से सहारा दिया। समूह से एक लाख रूपए का ऋण लेकर मैंने अपने पति की तमन्ना पूरी कर दी। सैलून की दुकान से औसतन 10 हजार रूपए प्रतिमाह की आय होने लगी है, जिससे मेरे परिवार की गाड़ी अब आराम से चल रही है।
आजीविका मिशन के प्रति धन्यवाद जाहिर करते हुए रेखा बोलीं कि यह मिशन महिला सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रहा है। ग्रामीण आजीविका मिशन शुरू करने के लिये स्व-सहायता समूहों से जुड़ी दीदियाँ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रति सदैव आभारी रहेंगीं।