ग्वालियर। ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर में पहले जहा भाजपा के गढ़ में कांग्रेस ने 57 साल के बाद सेंध मारी और महापौर कांग्रेस का जनता ने चुना, लेकिन अब भाजपा को बहुमत भी बॉर्डर पर मिला है जिसके कारण सभापति चुनाव में भाजपा को अपने ही पार्षदों के टूटने का डर सता रहा है। यही कारण है कि भाजपा को अपने ही गढ़ में पार्षदों की बाड़ाबंदी करनी पड़ी। अब इस ड्रामे के बाद प्रदेश नेतृत्व से निर्देश के बाद भाजपा के बड़े नेता अपना सभापति बनाने सक्रिय हुए और ऐसे में वह सबसे पहले अपने ही पार्षदों की बाडाबंदी करने का काम कर रहे है। मंगलवार सुबह भाजपा के पार्षदों को दिल्ली रवाना कर दिया जो 4 अगस्त को लौटेंगे, क्योंकि 5 अगस्त को सभापति के लिए चुनाव होना है। इधर कांग्रेस भी दावा ठोक रही है और कह रही है महापौर के बाद हम ही सभापति भी बनायगे।
तो क्या निर्दलीय पार्षद ही निर्णायक भूमिका में रहेंगे
भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टी निर्दलीयों को फेवर में करने की बात कर रही है तो यहाँ स्पष्ट है की निर्दलीय पार्षद ही निर्णायक भूमिका में रहेंगे। कांग्रेस पहले ही तीन निर्दलीय पार्षदो को पार्टी में शामिल कर चुकी है और अब उसका पूरा फोकस शेष निर्दलीय पार्षद सहित कुछ भाजपा के पार्षदो को तोड़ने की पूरी तैयारी है। यह निर्दलीय दोनों पार्टी के बागी है जो टिकट नहीं मिलने ताल ठोक मैदान में उतरे और जीत भी गए। इन निर्दलीयों में शिव सिंह यादव और मनोज यादव भाजपा से टिकट न मिलने से चुनाव में बागी हुए और जीत भी गए। यह दोनों पार्षद कभी ऊर्जा मंत्री के खास चेलें रहे है, लेकिन टिकट वितरण में उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर सके और बागी हो गए। इतना ही नहीं पार्टी ने दोनों को निष्कासन का नोटिस भी दिया लेकिन विड़बना देखो की पार्टी अब उन्हें ही मनाने में जुटी है। कमोबेश यही स्थिति दीपक माझी के साथ है। वह भी कांग्रेस का बागी पार्षद होकर जीता है हालांकि बाद में उसे प्रदेश पदाधिकार सुनील शर्मा का समर्थन मिल गया था। रही बात फैसले की तो यह तीनो पार्षद जिसकी गोद में बैठेंगे जीत उसी की होगी।
आकड़ो का गणित
अब सभापति के लिए आकड़ो का गणित पर गोर करे तो नगर निगम ग्वालियर में 66 पार्षद है जिसमें से 34 पार्षद भाजपा के चुनकर आएं है तो कांग्रेस के 25 पार्षद चुने गए है। कांग्रेस ने परिणाम आने के बाद ही 3 निर्दलीय पार्षदों को अपने दल में शामिल कर संख्या बल को 25 से बढ़ाकर 28 कर लिया है और जो बाकी निर्दलीय पार्षद है उनसे भी बातचीत होने की बात कांग्रेस नेता कह रहे है और दावा कर रहे है कि इस बार कांग्रेस का ही सभापति होगा। इस दावे के बाद भाजपा की चिंता बढ़ गई, क्योंकि अभी तक भाजपा के किसी भी बड़े नेता ने सभापति अपने दल का बनाने के लिए कोई कसरत शुरू नहीं की थी, लेकिन प्रदेश नेतृत्व से निर्देश मिलने के बाद भाजपा के बड़े नेता सक्रिय हो गए है और सबसे पहले वह अपने ही दल के 34 पार्षदों को एकजुट रखने का प्रयास कर रहे है। भाजपा को इस बात का डर सता रहा है कि महापौर के पति विधायक सतीश सिकरवार लम्बे समय तक भाजपा में रहे है और निगम में पार्षद लगातार रहते आएं है ऐसे में उनकी नजर जरूर भाजपा के कुछ पार्षदों पर होगी और भाजपा के लोग यह भी जानते ही आंकड़ेबाजी के खेल में कांग्रेस के अंदर सतीश फिलहाल भारी साबित हो रहे है जिसके कारण भाजपा का चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। यही कारण कि अब भाजपा नेता अपने पार्षदों को एक साथ रखने और कांग्रेस के संपर्क से दूर रखने के लिए दिल्ली ले गए है।
शपथ के बाद भाजपा सक्रिय हुई तो पार्षदों को पहुंचे निर्देश :
सोमवार को महापौर व सभी 66 पार्षदों की शपथ ग्रहण समारोह के बाद अचानक भाजपा नेता सक्रिय हो गए। सोमवार शाम तक भाजपा जिलाध्यक्ष कमल माखीजानी व महामंत्री मेवाफरोस ने भाजपा पार्षदों को सूचना दी कि वे दिल्ली जाने की तैयारी करें और मंगलवार सुबह भाजपा जिलाध्यक्ष कमल माखीजानी के ऑफिस पर एकत्र हो। सूचना के बाद भाजपा के पार्षदों ने तैयारी शुरू कर दी है, क्योंकि मंगलवार सुबह उनको ग्वालियर से दिल्ली के लिए रवाना कर दिया जाएगा। पार्षदों की बाडाबंदी के पीछे मुख्य कारण, भाजपा नेताओ के पास जो जानकारी पहुंच रही है उसके मुताबिक भाजपा के कुछ पार्षद सभापति चुनाव में खिसक सकते है, यही कारण है कि भाजपा नेता अपने पार्षदों का संपर्क कांग्रेस नेताओ से तोड़ना चाहते है। पार्टी के विश्वस्त सूत्रो का कहना है कि दिल्ली में भाजपा के पार्षदों के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा के अलावा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर व ज्योतिरादित्य सिंधिया मुलाकात कर उनको एकजुट रहने का मंत्र देकर सभापति बनाने का गणित बैठाएंगे।
पार्षदों की बाडाबंदी की सूचना से कांग्रेस भी सक्रिय :
भाजपा पार्षदों की बाडाबंदी की जानकारी लगने के बाद कांग्रेस नेता भी सक्रिय हो गए और उन्होंने अपने भरोसे के भाजपा पार्षदों से बात भी कर ली है। सूत्र का कहना है कि भाजपा के कुछ पार्षदों ने कांग्रेस नेताओ को भरोसा दिलाया है कि भले ही वह दिल्ली जा रहे है, लेकिन सभापति के चुनाव में सहयोग करने की कोशिश करेंगे। अब इस बात मे कितनी सच्चाई है यह तो सभापति चुनाव के समय ही पता चलेगा, लेकिन यहां कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है बल्कि भाजपा को खोने का डर सता रहा है।
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